हरी है भिंडी, हारी नहीं है
पकने की बेकरारी नहीं है
महँगा यहाँ पनीर है, लेकिन
भिंडी के व्यापारी नहीं हैं
नंगी रहती हर दम, उसको
हया नहीं या साड़ी नहीं है
प्यार करना वो भी चाहे
आख़िर, क्या वो नारी नहीं है
आलू मियां, निकाह करो अब
पतली है वो, भारी नहीं है
कितनी सुंदर लगती है जी
उसे मूँछ या दाढ़ी नहीं है
वफा में कट जाएगी, भिंडी
रोती नहीं, बेचारी नहीं है
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