दिल शायर है
ये उम्र की श्याम धीरे धीरे ढल रही है
चार पहर की ये ज़िन्दगी हर पल बदल रही है
ये ज़वानी की रेत मेरी हथेली से फ़िसल रही है
रोककर मुझे रास्ते में वो किसी और के साथ चल रही है
सिखकर मुहहोबत मुझसे इज़हार कहीं ओर कर रही है
सोचकर अंजाम ये रूह मेरी डर रही है
मालूम है कि फ़ितरत नहीं वफ़ा उसकी
फिर से होने तबाह ये ज़िन्दगी उसी की ओर चल रही है
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