हिंसा यूं कब तक जारी रहेगी
यहीं हालत कब तक हमारी रहेगी
अब सब्र का बांध टूट रहा है हमारा
बस निंदा ही कब तक जारी रहेगी
विवेचनाओं से पेट हमारा नहीं भरता
रोटी पर कब तक सियासत भारी रहेगी
भूख अब बन रही तलवार हमारी हैं
प्यास हमें अब कब तक प्यारी रहेगी
वो रहनुमा हमारे गद्दार निकले हैं सब
देश में अब कब तक ये लाचारी रहेगी
हम मजदूर हैं मजबूर हैं कमजोर नहीं
अब हमारी एकता तुम पर भारी रहेगी
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