"आज जल रहा हूँ मैं..."
आज जल रहा हूँ मैं,
बिना मोम ही पिघल रहा हूँ मैं...
कभी होता था जिसके आँखों का तारा,
आज उसी के आँखों में खल रहा हूँ मैं...
झूठे रिश्ते, झूठे वादे
सब को अब निग़ल रहा हूँ मैं...
इस काली दुनियाँ के माया जाल से,
ख़ुद से ही निकल रहा हूँ मैं...
ज़िन्दगी के कठिनाईयों को सोच,
अंदर ही अंदर मचल रहा हूँ मैं...
फिर भी आग की भट्टी में तपकर
एक नए 'मैं' में बदल रहा हूँ मैं...
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