बोझ होती नहीं, पर बोझ बन जाती है बेटियां,
रिवाजों के घूंघट में घुट कर रह जाती है बेटियां।
हां, सच है कि आसमां तक भी उड़ रही है बेटियां
पर सच है कि कहीं रो रो कर मर जाती है बेटियां।
कभी दुर्गा तो कभी काली का रूप लेती है बेटियां,
आंगन को खुशियों की चहक से भर देती है बेटियां।
जो हाजिरजवाबी हो तो अल्हड़ कहलाती है बेटियां,
जो जाने चुप रहना तो अनपढ़ कहलाती है बेटियां।
प्रेम समर्पण में डुबी कभी मीरा बन जाती है बेटियां,
कभी सौदेबाज़ी में पड़कर धोखा दे जाती है बेटियां।
फ्लर्ट के लिए अच्छी,
और शादी के लिए बेकार हो जाती है बेटियां ।
घर घर सामान की तरह घुमती रह जाती है बेटियां।।
कई बार प्रथाओं की बली चढ़ जाती है बेटियां,
चंचलता को जिम्मेदारियों में छिपाकर जी जाती हैं बेटियां।
बोझ होती तो नहीं,
पर समय की मार से बोझ बन जाती हैं बेटियां।
रिवाजों के घूंघट में घुट कर रह जाती है बेटियां ।।
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