दुआ मांगते थे जिन टूटते तारों से कभी,आज उनका दर्द समझ आया है
रौशनी देता था दीया जो कभी,आज उसके नीचे अँधेरा पाया है
मोहब्बत के पैमाने में डूबते देखा था जिसे कभी,आज उसी को शमा में जलता हुआ पाया है
शायद कुबूल नहीं हुई भेजी हुए दुआएं,तभी तो आज परवाने को दीये में मरा हुआ पाया है
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