मां के आंचल में रहते हुए वो बेटा चलना सिख गया हाथ में लेकर बंदूक वो बेटा लढ़ना सिख गया सर पर बांधकर कफ़न वो बेटा मरना सिख गया तिरंगे में लिपटकर वो बेटा देश के लिए शहिद होना सिख गया !
हर रोज़ वो बारिश से बचाने वाला छाता लेकर घूमने निकलता हैं आज कोई लड़की शादी के लिए मिल जाए यही सोच में रहता है दूसरो की शादी देखकर अपने शादी के सपनो में खो जाता है बस जाए मेरा भी घर संसार इसी उम्मीद में लगा रहता हैं कई लड़कियां आती हैं और चली जाती हैं लेकिन हमारे कुंवारे पोपटलाल बिन ब्याहे हि रह जाते हैं भगवान से प्रार्थना करते करते बिचारे अपनी जवानी खो देते हैं कभी तो होगी मेरी शादी ये सोच सोच कर बुढ़ापा अपना लेते हैं