आँखों की खिदमतगार पलकें जैसे कोई साज है
बेशकीमती शख्स की आँखों पर उनका राज है
खूबसूरती से तरासी हुई मोहब्बत की इमारत है
समझो नाचीज़ उनके आगे कई कई मुमताज है
उनकी मुस्कुराहट पर मेरी लाखों गजलें कुर्बान है
इनको बनाकर खुदा को अपने हाथों पर नाज है
भूल हुई है मुझसे जो पलटकर नहीं देखा इनको
यकीनन मेरी आँखें तो मुझसे आज भी नाराज हैं
कोई है मोहब्बत की तराजू मैं, तोल सकें इनको
खुदा खैर करे समझ लेना उसके सर पर ताज है
तन्हाईयों मैं गुजरती है आजकल जिंदगी हमारी
काश मैं कह पाता "तू" मेरा कल है और आज है
कपिल कि बदकिस्मती का आलम बस इतना है
कि वो इनकी एक झलक देखने को मोहताज है
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