जज़्बातों के तूफान में
कुछ इस कदर फिसल गए,
हमें तो इल्म भी ना हुआ,
और तुम बदल गए।
वो आतिश आसमानों की,
वो ख्वाहिश निगाहों की,
ज्यादा तो नहीं,
बस गम में है पनाहों की।
दूरी इश्क का कुछ बिगाड़े,
उसकी क्या औकात है?
फिर फासलों को क्या दोष दें,
जब पहले ही इश्क बर्बाद है।
होती हैं जड़े मजबूत,
अगर मोहब्बत का बीज हो।
जब हो ही ना मोहब्बत,
तो कोई अपना भी न अज़ीज हो।
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