इश्क़ से बद्दतर दर्द भी है ज़माने को
कभी पूछा भूखे से, कबसे नहीं मिली उसे रोटी खाने को
मजनू से बड़ी शिद्दत भी है लोगों में निभाने को
वतन, वर्दी और कर्म को चल दिया मनोज पाण्डेय जान गँवाने को
आशिकी के ज़ुनून से भी ज़्यादा है कुछ कर दिखाने को
माँझी ने काट के पहाड़, बना दी सड़क,अपनों को पाने को
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