जिनकी आमद से घर कर जाती हैं ख़ुशियाँ,
वो प्यार की मूरत बने घर आती हैं बेटियाँ।
आक़ा का फ़रमान है, पक्का उसका मक़ाम है,
अपने साथ जन्नत की बशारत लाती हैं प्यारियाँ।
घर में सरगम से मधुर, बजने लगते हैं जो सुर,
मीठी इनकी बोलियाँ, छन छनाती हैं चूड़ियाँ।
बेटे गर हों चराग़ तो बेटियाँ भि कुछ कम नहीं
लिए आँखों में वक़ार वो सजाती हैं पगड़ियाँ।
घर-आँगन को छोड़ कर जब चली वो जाती हैं,
जैसे चमन को छोड़ कर चली जाती हैं तितलियाँ।
ज़ाहरी नज़ाकत भी है, बातिनी ताक़त भी है,
ग़ैज़ पे जो आगईं, मिटा के रखती हैं हस्तियाँ।
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