।ए जिंदगी
तुझसे इतनी शिद्दत से मुहब्बत नहीं ,
तू रास्ता है मंजिल नहीं ।।
।मैंने सुना है बूढ़े दरख्तों से,
एक जहां है तेरे जहां से परे ,
जहाँ तेरे पेरहन का रिवाज नहीं ।।
।वहां आसमाँ हर रंग में होता है ,
एक सा इंसा और एक ही रब होता है ।।
।वहां घरों में दर्रो-दीवार नहीं होती ,
इंसान को बांटने की दरकार नहीं होती ।।
।हर मुंह को निवाला होता है,
वो ही रहबर और रखवाला होता है ।
।उम्मीद के परों से उड़ान होती है,
माँ के आंचल सी सुबह शाम होती है ।।
उन्हीं शामों का मुंतजिर है 'शेखर'
।।ए जिंदगी ।।
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