वैसे तो सब कुछ तुम्हें बता देती हूं,
अपनी उलझने भी तुम से सुलझा लेती हूं ,
मगर कुछ शिकायतें हैं मेरी तुमसे ,
जो मैं तुम्हें बोल नहीं सकती ,
कुछ अश्क़ ऐसे भी है मेरे ,
जो मैं तुम्हें दिखा नहीं सकती ,
मालूम है तुम पर मेरा कोई हक नहीं ,
फिर भी तुम पर हक जताती हूं ,
फिर वो ताजमहल वाली कहानी ,
खुद को बार-बार याद दिलाती हूं,
तुम्हारी कोई बात अगर बुरी लगे तो,
ख़ुद नाराज होकर ख़ुद ही को मना लेती हूं,
और युं सब कुछ भूलाकर एक बेनाम रिश्ता ,
मैं तुमसे निभा लेती हूं...
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