मेरे हर किस्से में जिक्र उन्हीं का होता है, मेरी हर गजल में नज़्म उन्हीं का होता है, मेरे हर हिस्से में वजूद उन्हीं का होता है, अब कैसे बताएं उन्हें हम की इस बेजान कि सांस बने बैठें हैं वो, मेरी रातों में भी बस ख्वाब उन्हीं का होता है।
आखिर कब तक सहती, वो भीगती तकिया.... ऐतराज कर बैठी आज, मेरी सिसकियों से.... फिर कहां बहे अब, दर्द- ए-दिल की ये दरिया..? लो बना डाली एकदम बेजार- बेजान से… मैंने खुद अपनी ही अखियां !! -@Arju
बेजान सी हो गई हूं.... दर्द हैं ,पर आसू नही... पास तो सब हैं ,पर अपना कोई भी नहीं.... बात ,किसी से भी कर लो..... पर एक बात जान लो ,यहां कोई भी अपना नहीं....!!!!😍😍😎😎