राज़-ए-उल्फ़त उसे बता भी ना सके,
नजरें कभी उससे मिला भी ना सके,
बस दीदार करते रहे दूर से ही उसको,
करके हिम्मत उसके पास जा भी ना सके।
जिक्र-ए-यार भी हम करते किस से,
मेरी निगाहें कभी कुछ छुपा भी ना सके।
फ़कत उसके नाम से ही अब सताते हैं दोस्त,
मगर कभी उसको अपना बना भी ना सके।
डरते हैं दुनिया की बंदिशों से हर पल,
उसे कभी खुद से चुरा भी ना सके।
गले मिलता हूं ख्वाबों खयालों में अक्सर,मगर
हकीकत में उसे कभी गले लगा भी ना सके।
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