घर फूलों का गुच्छा, सूने शहर और सूनी हर गली हो गयी....
मां के हाथ की दाल रोटी शहर के पनीर से ज्यादा भली हो गयी....
और गांव छोड़ कर जाने वालों...
कुदरत का कहर तो देखो हर शहर में खलबली हो गयी....
कॉफी के कप से ज्यादा महंगी चाय की प्याली हो गयी....
शहर में रहने वालों को अब प्यारी खेत की हरियाली हो गयी....
और जिनका पेट नहीं भरता था मां के हाथ की रोटी से....
अब वही चूल्हे की रोटी होटल की तंदूरी और रूमाली हो गयी....
अपने बच्चों को पढ़ाने में बाप के घर कंगाली हो गयी....
थोड़ी जरूरत क्या पड़ी बाप को,तो बच्चों की जेब खाली हो गयी....
और जब कुदरत का कहर बरसा हर शहर में तो....
हर बाप के दिल में बच्चों के लिए बेखयाली हो गयी....
अमीरों के घरों से दूर हर नौकर हर कामवाली हो गयी....
घरों में लगीं सफेद चादरें भी अब काली हो गयी....
और जो कभी राजाओं की तरह रहते थे....
अब पति सारे नौकर और बीबियां कामवाली हो गयी....
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