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ग़म ए उल्फ़त में इतना रो गया कौन,
पुराने ज़ख्मों को ये धो गया कौन।
फ़सल उम्मीद की पकने जो आई,
तो शक़ का बीज इसमें बो गया कौन।
कहानी जीस्त की बाक़ी अभी थी,
ये सुनते सुनते इसको सो गया कौन।
वतन पर जान देते वीर सैनिक,
शहादत देख इनकी रो गया कौन।
लड़े थे भाई अब तक माँ कि ख़ातिर,
ये माँ के खूँ का प्यासा हो गया कौन।
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