जो दिल से निकलकर आँखों से बहते है ना आशु...... वो तुझे साथ बाहर क्यों नहीं लाते...... निचोड़कर रख देते है दिल को मेरे अक्सर...... तुझपर करके वार तेरी बेवफाई का ये करार क्यों नहीं लाते .....
जिस गजल में ख़ुद को पढ़ने की कोशिश कर रहे थे उसमें जिक्र किसी और का ही था जिस कलम की स्याही में अपना रंग खोजते रहे उस लिखावट ने मेरी वफ़ा को बेबफा लिखा था हम जान गए थे एक दिन छोड़ेगे जरूर क्यों कि हमारा साथ तुम्हें गंवारा न था मजबूरी तो देखो दिल है दुखी लेकिन जाहिर ना कर सकते जानते हैं हमारे जताने से भी तुम्हें फर्क कहाँ पड़ने वाला था