वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी...
वो दादी के किस्से वो नानी की कहानी...
वो TV देखने के लिए एंटीना को घुमना...
सुबह रंगोली तो शाम को चित्रहार लगाना ...
जब-जब sunday आता था तब wait शक्तिमान का होता था...
सारा परिवार साथ मे मिलकर रामायण, महाभारत देखा करता था...
ना किसी को चिन्ता थी ज्यादा ना फिक्र हुआ करती थी...
सारा मोहल्ला, कालोनी और गलियां एक परिवार हुआ करतीं थीं ...
जब-जब कोई festival आता था तो चारों ओर शोर शराबा हुआ करता था...
क्या घर, क्या मोहल्ला पूरा शहर रोशन हुआ करता था...
खुलकर जीते थे लोग ना कोई दिखावटी ज़माना हुआ करता था...
Fb,Insta,Twitter नही,गली का पेड़ social सर्कल हुआ करता था...
मोबाईल का पता नहीं यारों, पूरी कालोनी का सिर्फ एक टेलीफोन हुआ करता था...
जब क्रिकेट का craze चारो ओर छाया रहता था...
ओर रेडियो की हर नई धुन पर सादा जीवन जीया जाता था...
चिट्ठीया लिखकर लोग एक-दूसरे हालचाल पुछा करते थे...
ओर एक टेलीग्राम के आने से सब लोग डरा करते थे...
धन्य हम सब जिसने मिलकर दोनों दौर का स्वाद चखा...
तेजी बदलते हुए इस युग को है हम सबने देखा...
बढ तो रहे है सब आगे जीवन की रेस मे अपने कुछ अरमान लिए...
पर जब मुडकर देखा पीछे तो पाया खुद को वही सुनहरे बचपन की याद लिए !!!
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