" ज़िंदगी मिलेगी ना दोबारा "
ज़िंदगी एक उलझते सुलझते डोर की तरह है,
जिसकी सुलझ गयी उसकी लम्बी है
जिसकी उलझ गयी, कब टूट कर थम जाए पता नहीं
एक इंसान किसी को दूसरा मौक़ा दे सकता है,
पर ज़िंदगी किसी को दूसरा मौक़ा नहीं देती
ये चंद लम्हों की सबकी अपनी खूबसूरत ज़िंदगी है,
इसे पूरे हक़ से और खुल के जियो
बेफिक्र, बेपरवाह, बेमिसाल, बेशुमार ........
क्या पता कब और कैसे ये ज़िंदगी रहे ना रहे !!!
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