किस्त भरते भरते तेरी ज़िन्दगी.सकूं का
कहीं मेरा वो कच्चा मकांन नहीं मिला.
बिकबाली में कट गये पेड़ ज़मीं के. फिर
मेरे आँगन में मुझे वो नादाँन नहीं मिला.
शामों शहर जिसका ही ख्वाब देखा मैंने
सपने में भी मुझसे वो इंसान नहीं मिला.
कह रहा कोई के खस्ता हूँ ख्याल मै भी.
वफा के काबिल कोई ईमान नहीं मिला.
इल्जाम शहर पर तलाशी हमारी भी हुई.
दो वक़्त की रोटी का मेरे घर में उन्हें
सामान नहीं मिला.
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