बंजारा कोई गली में शोर मचाये , हँसी मज़ाक करते करते औरो को दीवाना कर जाए , है उसमे मदहोशी भी कुछ इस तरह से सिमटी हुई , है उसमे उन्माद भी बरसों पुरानी फिर भी वो गाने से नही हटता पीछे ।
Tere alfazo mai.. Jo kashish hua krti thi... Wo is banjare ko bhi haisiyat Diya krti thi... Par Ab tere woh... Hi Alfaaz usi banjare ko uski Aukaat dikha deti hai...
तेरी क़ुर्बत में ही खत्म सारी चाहत मेरे, तेरी आहट से ही शुरू सारे जज़्बात मेरी, बंजारा रूह को तेरी साँसों में पनाह मिल गयी ,घर सा है तू हमनबा मेरी हमसफ़र है तू ,हमकदम है फ़िर क्यों न है तू मंज़िल मेरी??