हमारे देश मे आज भी कहीं;
मानो वेश्या और दुल्हन एक ही मिट्टी के
अलग अलग पुतले हो,
दोनो बिकते है मर्दो के बाजार में
जितनी अधिक कीमत उतना अच्छा ज़िस्म
मिलता है ख़रीदार को,
फर्क बस इतना सा है;
एक सौदा कोठे पर होता है, दूसरा आलीशान महलों में
एक सौदा दलाल के हाथों, दूसरा कहीं माँ बाप के हाथों,
और एक में जिस्म होता है,दूजे में समाज का रुतबा
पर सौदा तो बेटियों का यहाँ हर रोज होता है...
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