बुझने लगी है लौ अल्फाजों की मेरे
कहीं फिर बसने तो नहीं लगा मैं दिल में तेरे
रहेगा इंतज़ार हमेशा तेरे लौट के आने का
पर तू लौट कर ना आना अब कभी दिल में मेरे
तेरी आदत है आने और मुझे तोड़ कर जाने की
मुझे मुश्किलों से संभाला है अल्फाजों ने मेरे
मेरी लिखावट ने सीखा दिया है जीना तुझ बिन
बिखेरता हूं समेटता हूं अब सारी यादों को तेरे
तेरे दिए हुए ज़ख्मों को भर रहें हैं ये "निहार"
नज़र मत लगा अब अल्फाजों को मेरे..!!
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