कहूं भी तो क्या मै, कहने को अब बचा क्या है
दो पल की खुशियां फिर तो हर किसी से धोखा ही मिला है,
अपने बनकर पीठ पीछे से वार किया करते हैं अपने ही,
गेरो से शिकवा क्यों करे अब अपनो ने ही कहां का
छोडा है,
दिल में रहने वाले कब घर से और फिर घर से भी बाहर हो जाते हैं कुछ कह नहीं सकते,
कलयुग है साहब यहां रिश्ते भी मतलब के तराजू में
तोले जाते हैं,
जहां मोल नहीं किसी की भावनाओं का,
वहीं पर एक समझौते ने सबके लिए अपनी इच्छाओं
को दबाया है....
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