वट को उदास देख कर उससे, कहती है उसकी छाया
क्या दुविधा है मुझ को बतला, ऐसे क्यों मुहँ लटकाया
वट बोला सुन मेरी बातें, पतझड़ का मौसम है आया,
इन कल-कल करते बच्चों से मेरे वियोग का बादल गहराया,
इक-इक कर ये सारे फिर मुझसे यूँ गिर जाएंगे
हरा-भरा घर आँगन मेरा फिर सूना कर जाएंगे
छाया बोली तो क्या हुआ जो ये कल गिर जाएंगे ?
बिन तेरे-मेरे ये सब भी तो चैन कहीँ ना पाएंगे,
फिर अगले बसंत बड़ी ख़ुशी से वापस तुझ तक आएँगे
जाने दे तू इन सारों को जो पतझड़ का मौसम है आया,
बस तू मेरा और मैं तेरी, कहती है तेरी छाया
बेहतर हैं इंसानों से हम, जो बच्चे लौट कर आते हैं,
इंसानों की आँखों से तो बसंत गयी फिर जाते हैं,
सर्द ग्रीष्म बसंत में भी उसकी पत्ते न लौट कर आते हैं,
वही बूढ़े पेड वहाँ पर घिस-घिस कर मर जाते हैं
वट बोला इंसानों से बेहतर हैं हम, ये अब मैं हूँ समझ पाया,
मैं तेरा और तू मेरी, सुन ले तू मेरी छाया ।।
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