पंछी फड़फडा रहे हैं ,पिंजरे मे बैठे...
उड़ने की बेचैनी में,
न जाने इंतजार कब पूरा
होगा उस एक दिन का,
घूटन है!.. बेचैनी है!!..
बंधे हुए है एक जाल मे।
खिडकियाँ खुली हैं घरों की,दरवाजे बंद है हवाएँ
अाती हैं और आ के लौट जाती है।
कैद है रूह-व-दिलो दिमाग,
तडफ!!!.. सबर!!!!..सूकून!!!!!..
सब ने आजमा के देख लिया ,पंछी टकटकी लगा कर देख
रहें है खुले आसमान को....???
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