QUOTES ON #AZADIVISHESH

#azadivishesh quotes

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15 AUG 2018 AT 18:50

बापू के उस रामराज्य का स्वप्न अभी साकार कहाँ।
टूट सकी है दैन्य-दुर्ग की अभी अचल दीवार कहाँ॥
निकल सकी है नाव भँवर से किन्तु किनारा दूर अभी।
क़दम बढ़े हैं आगे कुछ पर लक्ष्य हमारा दूर अभी॥

पथ को ही मंजिल मत समझो और अभी बढ़ना होगा।
दीन-दुखी जर्जरित राष्ट्र का भाग्य स्वयं गढ़ना होगा॥
धीर वीर प्रहरी बन कर करना होगा परित्राण हमें।
अर्द्ध खिले इस उपवन का करना है नवनिर्माण हमें॥

[महावीर प्रसाद 'मधुप']

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13 AUG 2018 AT 18:57

[जलियाँवाला बाग में बसंत / सुभद्राकुमारी चौहान]

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।

कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से,
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।

परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है,
हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।

ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना,
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।

(पूरी कविता अनुशीर्षक में)

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12 AUG 2018 AT 6:43

हो रहे खड़े आज़ादी को हर ओर दगा देनेवाले,
पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेनेवाले।
इनके जादू का जोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है?
है कौन, पेट की ज्वाला में पड़कर मनुष्य रह सकता है?

झेलेगा यह बलिदान? भूख की घनी चोट सह पाएगा?
आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा?
है बड़ी बात आज़ादी का पाना ही नहीं, जुगाना भी,
बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी।

[रामधारी सिंह दिनकर]

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14 AUG 2018 AT 18:13

[15 अगस्त 1947 / शील]

युग-युग के अवढर योगी की
टूटी आज समाधि
आज देश की आत्मा बदली
न्याय नीति संस्कृति शासन पर
चल न सकेंगे—
अब धूमायित-कलुषित पर संकेत
एकत्रित अब कर न सकेंगे ,श्रम का सोना
अर्थ व्यूह रचना के स्वामी
पूंजी के रथ जोत ।


(रचनाकाल : रात्रि 14 अगस्त 1947)

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12 AUG 2018 AT 19:41

*कुलतार के नाम अंतिम पत्र*

सेंट्रल जेल, लाहौर
3 मार्च, 1931

प्यारे कुलतार,

आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दुख पहुँचा। आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था। तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते।

बरखुरदार, हिम्मत से विद्या प्राप्त करना और स्वास्थ्य का ध्यान रखना। हौसला रखना, और क्या कहूँ -

उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-जफ़ा क्या है
हमें यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है।

[ पूरा पत्र अनुशीर्षक में पढें]

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11 AUG 2018 AT 17:15

स्वतंत्रता दिवस विशेष : स्वतंत्रता संग्राम में साहित्य और समाचारपत्र की भूमिका

(लेख अनुशीर्षक में पढें)

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14 AUG 2018 AT 12:41

यदि हम 14 अगस्त 1947 को 11:59 पर होते तो

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14 FEB 2020 AT 15:02

क्या लेख लिखूं मां भारती के सपूतों पर,
मेरी कलम के अल्फाज कम पड़ जाते हैं....

सोंचु जब उनके बारे में तो,
बस आंखों से आंसू निकल आते हैं...

मनाते हैं हम घर पर त्यौहार बगैरा,
पर उनके परिजन उनकी राह देखते थक जाते हैं ...

क्या लेख लिखूं मां भारती के सपूतों पर,
मेरी कलम के अल्फाज कम पड़ जाते हैं....


हम जो आजादी का हर वर्ष जश्न मनाते हैं,
कैसे भुलू मै उनकी शहादत😭
जो वतन-ए-आजादी पर प्राण निछावर कर जाते हैं ....

क्या लेख लिखूं मां भारती के सपूतों पर,
मेरी कलम के अल्फाज कम पड़ जाते हैं....

🙏उन मां के वीर सपूतों को सत सत नमन 🙏

...मेरी कलम ✍️से...

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14 AUG 2018 AT 17:53

इन आज़ाद लफ़्ज़ों को बीते ज़माने याद हैं
इंकलाब के नारों के वो फस़ाने याद हैं
ये गुल हैं वतन के गज़लों में पिरो देना
ये ख़ामोश अल्फाज़ नहीं वतन की आवाज़ हैं

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15 AUG 2018 AT 22:32

हृदय की धड़कनें बोलें तो ही जतन करना ,
इस माटी की खातिर तुम जीवन हवन करना ।
भले भारत माँ की तुम जयकार नहीं करना ,
लेकिन शहीदों की शहादत को नमन करना ।

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