क्या किसी को कोसना ही ,इश्क़ है,
जब शिकवे इतने थे ,तो ,इश्क़ था ही कब?
इश्क़ तो एक रेत है फिसलता हुआ,
जो रोक सके ,उनका भी इश्क़ है,
जो मुट्ठी भर पा सके ,उनका भी इश्क़ है,
जो तप गए ,उसकी आंच में ,उनका भी इश्क़ है,
जो ठोकर मार कर खुस हुए,उनका भी इश्क़ है,
जो ठुकराये गए ,उनका भी इश्क़ है,
जो अपनाये गए,उनका भी इश्क़ है,
जो किसी के न हुए ,उनका भी इश्क़ है,
"इस जिंदगी में ,उनपे क्यों ऐतबार करिए,
जिससे इश्क़ हुआ ,उनपे क्यों वार करिये,"
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