न जाने क्यों गले में चीख बन जाती हैं आवाजें कभी तन्हाई में जब गुनगुनाना चाहते हैं हम.. आज शहरों में भी हैं खतरे.. पहले जंगलों में भी कहाँ थे इतने.. हमारे शहर में अब हर तरफ वहशत बरसती है सो अब जंगलों में अपना घर बनाना चाहते हैं हम.. लोग कहते हैं किस्से अपने जैसे कि कोई शाहजहां थे पहले खैर अब तो किसी को कुछ नहीं सुनाना चाहते है बस अकेले आए हैं तो ज़िन्दगी को अकेले ही सवारना चाहते हैं हम..