तुम और मैं,जैसै सूरजमुखी और धूप
मुझमें तेज था क्यूंकि तुम्हे खिलना था।
तुम रौशनी हो मेरी आँखो की,मुझे
दुनिया तुम्हारे साथ देखने की आदत है
पर तुम्हे बहुत दूर जाना है,और मैं हमेशा
रहुँगी ,तुम्हारे फलक पे क्यूँकि तुम्हे खिलना है
सब कुछ न कुछ दे रहे है तुम्हे और मैं
आज तुम्हे °पंख' दे रही हुँ ,जाओ ये
आसमान तुम्हारा है,भरलो उङान और
तोङ़ लाओ वो तारे ,ये सब सपने है तुम्हारे
और हौसला टूटने मत देना,मै हूँ तुम्हारे पीछे
तुम्हे गिरने नही दूगीं।और तुम कहाँ रूकने वाले हो
तुम तो `अविरल' हो,ये नाम भी मैनै दिया है तुम्हे।
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