कभी-कभी तन्हाई में मैं अक्सर ये सोचता हूँ....
कभी-कभी तन्हाई में मैं अक्सर ये सोचता हूँ....
सोचता हूँ उन लम्हों को,जो लम्हें बनकर गुज़र गये।
गुज़र गये कुछ ख्वाब बनकर ,कुछ याद बनकर रह गये।
इन गुजरे लम्हों को जब, आज की खिड़की से देखता हूँ,
देखता हूँ उन पन्नों को, जो पन्ने कबके पलट गये।
इन पन्नों को पलटने से फिर से दिल को रोकता हूँ,
कभी-कभी तन्हाई में मैं अक्सर ये सोचता हूँ।।
सोचता हूँ उन ख्वाहिशों को,जो ख्वाहिश बनकर ही रह गयीं,
रह गयीं सीने में दफ़न, एक आस बनकर रह गयीं।
इस आस को मैं आँख में आंसू की तरह सोखता हूँ,
कभी-कभी तन्हाई में मैं अक्सर ये सोचता हूँ।।
सोचता हूँ किसी की उम्मीदों को , जो उम्मीद बनकर ही रह गयीं,
रह गयीं एक ख्वाब बनकर, एक प्यास बनकर रह गयीं।
कुछ सवालों के जवाब मैं खुद से ही पूँछता हूँ,
कभी-कभी तन्हाई में मैं अक्सर ये सोचता हूँ।।
आज भी जब देखता हूं, ख्वाब रातों में कभी,
देखता हूँ ख्वाब में, एक ख्वाब पूरा हो कभी।
इस ख्वाब को मैं अक्सर ख्वाब में ही देखता हूँ,
कभी-कभी तन्हाई में मैं अक्सर ये सोचता हूँ।।
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