काश खुदा के घर का पता होता हम मिलने नहीं जाते, बस अपनों से जुदा ना होता। महफ़ूज़ है अपने ये जानकर, रहते हम भी बेफिक्र होकर। मिलने की परवाह न करता, बात नही होती तो भी चलता, बस उनका हाल पता होता और हमेशा उनकी ख्यालों में रहता।
सुनो! रात भी काफी हो गई है अब सोना भी तो है! सुबह उठकर ज़िन्दगी की जद्दोजहद मे फिर से खोना भी तो है! मंज़िल तक पहुंचने से पहले हर मोड़ पर सम्भलना भी तो है! ख़्वाब टूटे है अनगिनत लेकिन फिर से कोई ख़्वाब सजोना भी तो है! सुनो! रात भी...... अब सोना भी तो है ।
एक ज़माना वो भी था जब ये ज़िन्दगी का सफर भी आसान था !! बात उस बचपन की है जहां ये दिल और दीमाग दोनो ही नादान था !! उस उम्र की हर सोच मे हर किसी को बस बड़े होने का अरमान था!! अब बड़े हुए तो समझ आया कि गरीबी मे भी बचपन कितना धनवान था।।