कड़क धूप में नंगे पाँव चलकर देखा है क्या,
पत्थर कितना पत्थर दिल होता है ये आज़मा के देखा है क्या।
मकान ढह जाते है लोगों की नज़रों के सामने,
उन मकानो को नयें सिरे से बनाकर देखा है क्या।
छोटी छोटी नदियाँ बहती है कल कल करते हुए,
इतना बड़ा समुंदर शांत क्यू ये उसे पूछा है क्या।
बगेर पूरा हुए इश्क़ की यादों में खोयें रहना
ये कभी तुमने एक सच्चे आशिक़ से पूछा है क्या ।।
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