सरोवर चाहिये अगर सबको,
तो क्या समंदर की चाह रखना गुनाह है;
अगर एक ही तरीके से सोचते हैं सब,
तो क्या अलग तरीके से सोचना मना है।
मिट्टी,पानी,पंछी,वायु सबका अपना ध्येय है,
अपने पंख फैला कर झुंड से अलग उड़ना क्या मना है;
हर किसी मे कुछ खास है,हर कोई किसी विशेष कार्य के लिये बना है,
जीवन तेरा है,तू खुद पेहचान की आखिर तू किसलिये जन्मा है।
विस्त्रित गगन में निशा को चाहे रहते हैं अनगिनत तारे,
कर तू भी अपना प्रयास पूरा,क्यों तुझे नही उन सितारों की तरह चमकना है;
विशाल,वृहद रेहता है वन घनघोर,होते हैं उसमें हर किस्म के नज़ारे,
विश्वास ही सबसे सुंदर आभूषण है,तू भी रख कर देख,
क्यों तुझे नही इस जग में अलग से मेहेकना है।।।
-