मेरी असलियत मेरा डस्ट-बिन जानता है.
अपनी घृणा,अपनी असफलता,
अपनी बेईमानी,अपनी शेखी,
अपनी बुराइयाँ,अपना 'नपुंसक' आक्रोश,
'ये सब' अपने डस्ट-बिन में फेंक कर
बाहर निकलता हूँ मैं.वो जो बाहर
मिलता हूँ न आपसे ?
नकली..'मैं' हूँ ,
असली आदमी तो
घर के डस्ट-बिन में है !
-