ज़िंदगी गर जीना है ,
तो कुछ अलग उसूल कर लो.....
प्रणय के ख़ातिर यारों ,
कुछ काँटे भी कुबूल कर लो......
ये तो मालूम है यारों ,
चमन से "बहार" तो गयी होगी....
चमन के चाहत में बहार ,
क्या काँटों से बच गयी होगी??
ऐ मोहब्बत के काफ़िले, ज़रा तू ठहर तो..
हम भी आते हैं, पाँव के काँटे निकाल कर..
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