लिख लिख के थक चुके है
क्या लिखे क्या समझाए
अब तो दिल करता है
हर गलती पर बस पर्दा करते जाए
जो खुद से हारे है
तो दुख गहरा सा लगता है
बीच समन्दर मे डुबा है
उस जहाज सा लगता है
खुद को कितना भी समझाए
दुसरो से प्रेरणा कितनी भी ले आए
पर जो दिल के तार है रुठ गए
शायद इसीलिए खुद को खड़ा नही कर पाए
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