सावन का उल्लास आया
शिव का गौरव फिर मंडराया।
उमड़ रहा आमोद हृदय में,
दिवा स्वप्न में हर्ष बनके,
निर्जन थी, हलचल में भी गलियां,
रज - रज के श्रवण ने भिगोया,
सावन का उल्लास आया
शिव का गौरव फिर मंडराया।
जग रहे उमंग हृदय में,
बार - बार सोम सा छलके,
सावन के झूलों से सजे मन,
विश्वनाथ के प्रीत में खोकर,
मन बार-बार ललचाया।
सावन का उल्लास आया
शिव का गौरव फिर मंडराया।।
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