लेखनी और भावों के जितनी ही
तारतम्यता जोड़ पाई
कभी अथाह और कभी
निर्वहन मात्र की
जगह उतनी भर मिली
कभी संकड़े गलियारे
कभी खुली सड़क
कभी बंद कमरे कभी खुला आकाश
गुंजाइश इतनी ही थी
कुछ बंजर कुछ उर्वर
गीला आसमान और सूखी सतहें
अहसास के पन्नों में
गुल से कांटों का सफ़र
सूर्योदय से सूर्यास्त
और चांद रातों में
अमावस के किस्से।
प्रीति
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