QUOTES ON #AMU

#amu quotes

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16 DEC 2019 AT 17:02

कहाँ तक रोक पाएगी हुकूमत इस मुखालिफत की हवा को,
कि कोई भी तकसीम कर सकेगा मज़हब के नाम पे वतन को।

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19 DEC 2019 AT 12:05

India secular hai,
Hum sab ka desh,
Hum sabhi ke liye.
Dharam dekh kar
Nagrikta dey — itna Chhota nahi hai mera Desh.


🍁©—Ashmeera Saba

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19 DEC 2019 AT 9:03

Kisi bhi state ki,
koi bhi University
ke Students
par Barbariyat/Lathicharge
.
.
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CONDEMN!



🍁©—Ashmeera Saba

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4 MAY 2018 AT 15:45

ALIGARH "MUSLIM" UNIVERSITY

दीवार पर टंगी तस्वीर तो हट जाएगी।
जो दिल मे गद्दारी पल रही, उसका क्या?

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7 OCT 2021 AT 1:52

🌸___💕

भीगी हुई एक शाम

की दहलीज पे बैठे

हम दिल के सुलगने ..

का सबब सोच रहे.💚

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4 OCT 2021 AT 17:10

बहुत “ खुबसूरत हैं

मेरे ख्यालो „ की दुनिया

बस अलीगढ़ :💚 से शुरू

और अलीगढ़ :♥️ पर ही खत्म

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6 JAN 2020 AT 11:04

काश, थोड़ा समय और देते स्कूल में,
संविधान को समझ जाने में!
समझ आता कि है ये बस, 'निरपेक्ष' ताने-बाने में।
समझ आता कि जनता सरकार की तिजौरी नहीं है!
'सरकार और जनता' एक दूसरे के पूरक रहें हैं।
समझ आता कि संविधान ने विरोध पर,
अपनी बात रखने पर अंकुश क्यों नहीं लगाया।
समझ आता कि DU, AMU, JNU, IIT जैसी संस्था क्यों आम बच्चों(हर क्लास) को भी रास्ता देती है!
क्यों RTI पर थी नहीं कोई पाबंद और ज़बरदस्ती!
क्या हुआ था, जब इंद्रा ने निरंकुश होने की चाहत थी रखी?
आज सरकारी संस्थाओं की निलामी हो रही है!
घुस कर कैंपस, होस्टल में छात्रों को पिटवाया जाता है,
फिर, बेशर्मी से सबको देश-द्रोही बतलाया जाता है।
काश, संविधान पढ़ा जाता, लगता है आज संविधान की भी निलामी हो रही है!!

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3 MAY 2018 AT 21:38

इंसान नही विचारधारा की विरोधी हूँ
मज़हब के चूल्हे पर राजनीति की रोटी
हिन्दू मुस्लिम नही राष्ट्रगरिमा अहित की विरोधी हूँ

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17 DEC 2019 AT 20:17

------۔ احتجاجی غزل ---------

امیرِ شہر کی مسند پہ اُس کے بام پہ تھُو
وہ جس مقام سے گزرے ہر اُس مقام پہ تھُو

لکھوں گا تھوک سے فرعونِ وقت نام تیرا
اور اُس پہ تھوک کے بولوں گا تیرے نام پہ تھُو

مجھے قبول نہیں ہے نظامِ نو تیرا
ہزار بار کہوں گا ترے نظام پہ تھُو

وہ جس کو پی کے لہو میں کوئی اُبال نہ ہو
اُٹھا کے پھینک دو ایسے ہر ایک جام پہ تھُو

مرے لہو کے چراغوں سے جو نہ روشن ہو
تو ایسی شام پہ لعنت، تو ایسی شام پہ تھُو

صباؔ یہ وقت نہیں ہے کہ بات حُسن کی ہو
لہو نہ گرم ہو جس سے ہر اُس کلام پہ تھُو

یہ غزل کسی اور کی ہے، حالتِ حاضر کے عین مطابق- تمام اہل قلم عشق و حسن کو چھوڑ، رنج، سوز، ہجر کو تاک پر پھینک کر اپنا stand لین، مظالم کے خلاف، نسلوں کے حق میں ۔

🍁©—اشمیرا صبا

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27 JUN 2021 AT 1:39

जन्मभूमि ने भले ही ज़िन्दगी दी है...
मगर जीना कर्मभूमि ने सिखाया है...

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