अब कहा मौत के पैगाम से डर लगता है अब तो बस जिंदगी के नाम से डर लगता है कितनी सूनी और अकेली है ये जिंदगी कि अब तो ढलते हुये सूरज और चाँद से डर लगता है अब कहा जुदायी के पैगाम से डर लगता है अब तो बस मोहब्बत के नाम से डर लगता है अब कहा आंसुओं के नाम से डर लगता है अब तो बस ख़ुशी की एक मुस्कान से डर लगता है अब कहा कांटो के ढेर से डर लगता है अब तो बस मोहब्बत के एक शेर से डर लगता है अब कहा आम और अवाम से डर लगता है अब तो बस दिल में दबते हुए अरमान से डर लगता है अब कहा मौत के पैगाम से डर लगता है अब तो बस जिंदगी के नाम से डर लगता है..!!"