गूंज उठा है आज तुम्हारा
आलोक वीणा
झूम उठा है आज सारा भुवन
आज प्रभात बेला में वो धुन सुन
कर, खोल दिया मन
आज समीरन आलोक से पागल
नवीन सुर के लीला में
आज गीतमाला बरसा
शरद के आकाश वीणा में
तुममें हारा मेरा जीवन
तुम्हारे आलोक से निरुपम
भोर के पंछी गा उठा
तुम्हारा बंदना
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