पीहर में मेरे कमरे में रखी है
मेरी प्यारी-सी अलमारी...
एक शेल्फ है जिसमें हैं
वो सारे कपड़े,
जो कभी मुझ पर जचते थे,
जिन्हें पहन मैं खूब इठलाती थी...
एक शेल्फ है जिसमें हैं
वो सारी किताबें,
जो कभी मैंने पायी, कभी खरीदी थी,
जिनमें डूबकर मैं ख़ुद को पाती थी...
एक शेल्फ है जिसमें है
ढेर सारा सामान -
झुमके, कड़े, पेंटिंग, ग्रीटिंग कार्ड्स...
जो थे मेरा बचपन, वो थे मेरा लड़कपन...
और है, एक छोटी-सी तिजोरी,
मुझे सबसे प्यारी, क्योंकि
उसमें छुपा है यादों का एक जहां...
एक गुल्लक जिसमें रखती थी चुन-चुन अरमां...
जब भी जाती हूँ वहाँ,
खोल लेती हूँ अपनी वो अलमारी...
एक बार छूकर सब कुछ
फिर से जी लेती हूँ जवानी सारी...
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