अक़्सर याद आते हैं, हॉस्टल के वो दिन...
दोस्तों के साथ बड़े ही अच्छे गुज़रे वो दिन...
बिखरे हुए कमरे में गप्पे लगाना...
एक दूसरे से छीन छीन कर खाना..
देर रात तक जाग-कर,आधे दिन तक सोते रहना...
वो पीएचडी के दिन,अक़्सर याद आते हैं..
बिना पढ़े पीएचडी का रोना रोते रहना...
सबके साथ मिलकर वही सुपरवाइजर का रोना,रोना...
कैसे होगी यार ये पीएचडी, हर बात पे यही रोना...
पूरा दिन पढ़कर भी एक अक्षर ना लिख पाने के गम में,कैंटीन से चाय पर चाय पीना..
अक़्सर याद आते हैं, हॉस्टल के वो दिन...
घंटी बजते ही खाने के लिए दौड़ जाना..
स्पेशल डिनर का जरूरत से ज्यादा खा लेना...
फिर घंटा भर खाना हजम करने के लिए टहलते रहना...
बिना बात के दोस्तों के साथ घूमने निकल जाना...
एक ही स्कूटी पर सब दोस्तों का लटक जाना...
बिना बात के दोस्तों से ट्रीट ले लेना...
यूनिवर्सिटी कैंपस में टहलना...बिना बात के नए रास्तों पर निकल जाना...
दोस्तों के साथ बिना बात के ठहाके लगाना...
ऐसे ही हस्ते मुस्कुराते रोते चिल्लाते कब वो दिन बीत गए...
अक़्सर याद आते हैं, हॉस्टल के वो दिन...
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