QUOTES ON #AKIB

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14 SEP 2018 AT 17:32

मुँह से चौबीसों घण्टे अंग्रेज़ी बोलने वालों को
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हिंदी में हिंदी दिवस बधाई

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19 MAR 2019 AT 8:44

मेरी ज़िन्दगी ने सिखाया ज़िन्दगी का सबक
हर पन्ने में कुछ सीखने को नया मिल जाता है


✍️आकिब जावेद

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21 DEC 2018 AT 19:29


ये नक़ाब दिल से जरा हटा दीजिए
मेरे दिल को दिल से मिला लीजिए
मुद्दत हो गई खुदा उनसे मिले हुए
चाहत दिल में उनके जगा दीजिए

-आकिब जावेद

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17 MAR 2019 AT 15:53

परवाह दिल-ओ- ज़िगर का किया करो
दिल का मसीहा बन तुम मुझे रिहा करो

-आकिब जावेद

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18 OCT 2018 AT 20:32

भूल बैठेगा ज़माना तुम्हे,ग़र दीवाने हुए
दिल के रावण को जलाना आसान नही

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15 APR 2018 AT 8:19

दर्द से चीख रही वो मासूम बच्चियां
दरिंदगी को कब तलक मिटाया जाएगा।

आसिफा हो या की अब यहाँ निर्भया
लक्ष्मी देवियो को क्या ऐसे कुचला जाएगा।।

कुंठित सोच के है लोग सब यहाँ।                            समाज से बुराइयों को कब हटाया जाएगा

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26 MAR 2020 AT 11:57

कुछ इस कदर खुद में खो जाइए
सर से पैर तक ढकिये सो जाइए

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30 SEP 2020 AT 10:58

चुप है भगवान
हँसता हैवान
देख देख के
सब परेशान
दरिंदे बने है
लेते है जान
अस्मत लुटे
इंसा शैतान
विकृत रुप
क्या है मान
माँ बेटी बहन
इनका अपमान
बालिका दिवस
झूठी है शान
निवेदन सबसे
न लीजिये जान

-आकिब जावेद

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16 NOV 2019 AT 17:39

ज़िन्दा मेरे  वजूद  की कहानी लगे मुझे
उनके बगैर जिंदगी भी बेमानी लगे मुझे।

उनकी  मोहबतो  के ही दम जीये मगर,
गम दीदा ख्वाइशों की जुबानी लगे मुझे ।

मेरा नसीब खींचके वहीं लाया तेरी तरफ,
बिमारे जांबलब की ही निशानी लगे मुझे।

मासूम बने सहारे का युं हमें आसरा मिला,
हर तरहा से ही तेरी मेरी कहानी लगे मुझे ।

-आकिब जावेद

                           

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8 MAR 2019 AT 16:58

आँचल में अपने अपनत्व,प्यार ,ममता रखती हूँ
बचपन में भाई का ख्याल,बाबा को प्यार करती हूँ

हा मैं स्त्री हूँ।

थोड़ा जब मैं बड़ी हुई,बाबा ने डोली में बिठाया हैं
मन में अपने पत्थर रखकर अंगना बाबा का छोड़ी हूँ

हा मैं स्त्री हूँ।

जँहा मैं बड़ी हुई,जिस अंगना में खेली हूँ
उसको छोड़कर पति के घर बिन सोचे आ जाती हूँ
खूब करती सेवा,पति को प्यार करती हूं
ना कुछ कहती,घर दूसरा सम्भालती हूँ

हा मैं स्त्री हूँ।

आकर अपने पति के घर,यूँ घर को खूब महकाती हूँ
सास ससुर को अपना माना,माँ बाप समझती हूँ

हा मैं स्त्री हूँ।

अपने घर की राजकुमारी,बाबा की सहजादी हूँ
आकर पति के घर,पहले पति को मानती हूँ
घर के सब लोगो को खिलाती हूँ,फिर मैं कुछ खाती हूँ

हा मैं स्त्री हूँ।

जब बच्चे का जन्म होता,माँ की ममता बन जाती हूँ
खूब लाड करती हूँ, आँचल अपना महकाती हूँ
हमेशा दूसरों की सेवा करना यही बचपन से सीखी हूँ

हा मैं स्त्री हूँ।

-आकिब जावेद

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