दूर कहीं बैठी मैं एक दिन।
सबसे अलग, सबसे जुदा हो कर।
ये मैं सोच रहीं थी।
क्या हो गया है इस संसार को...
हर तरफ नाश ही नाश है,
हर तरफ बुराई का ही वास है।
अच्छे लोग सजा पा रहें है,
बुरे लोग मजा खा रहें है।
हर लोग अपने आप को नेता कहते है,
अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते है।
जहाँ देखो वहाँ भ्रष्टाचार है,
घूस लेकर कोई भी काम करने को तैयार है।
पैसों वालों की वाहवाही है,
मजदूरों की जिंदगी में बहुत कठिनाई है।
जिंदगी में कुछ ऐसा करना है,
सभी में खुशियाँ बाँटना है।
सब ना सही पर थोड़ा ही,
सबके बुरे नजरिए को बदलना है।
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