कभी मुस्कान,तो कभी उदासी बन जाते हो
न जाने कभी-कभी, कैसी बातें कर जाते हो
मेरे खातिर दुनिया छोड़ने को क्यों बोलते है
जब हर बात पर तुम, दुनिया से डर जाते हो
कभी तो आकर,मेरे ख़्वाबों को महकाते हो
और कभी तो मेरी चश्म-ए-तर बन जाते हो
मैं सिर्फ तुम्हारी,मुन्तज़िर बानी रह जाती हूँ
नजाने कैसे तुम हमसे बर्गश्ता कर जाते हो
जब अहसास में,कुर्बतों सा महसूस होता है
तभी तुम कैसे अपने, अंदाज़ बदल जाते हो
तुम बदलते आशिक़ से हो, कभी दर्द देते हो
कभी'आयु' के इश्क़ में कातिब बन जाते हो
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