नेताओं का जमावड़ा, शहर में अब दिखने लगा,
लगता हैं चुनाव के दिन, निकट आने लगा !
झूठे वचन और वादों का, तांता अब लगने लगा,
ख़ुद सफ़ेद कुर्ता पहन, जनता को टोपी पहनाने लगा !
मैं समाज सेवक हूँ आपका, थोड़ा सा पुण्य कमाने दो,
बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो !
कहीं पैसा तो कहीं मदिरा, हर गली-गली बटने लगा,
वोटों के प्रलोभन में, नेताओं ने ये खेल खेलने लगा !
एक-दूजे को नीचा दिखाकर, छिड़ गई सत्ता की जंग,
जो रंग बदलते हैं ये वो गिरगिट, क्या देंगे जनता का संग !
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