उम्र पढ़ करार न दो, अक्ल तजुर्बों से ही पूर्णत: हमेशा आती है।।
चंचल बरसातें ये, छत संग हर बार हमें तरनें की साजिशें रचाती हैं,
बगीचे तुम्हारे, खेत हमारे,तितलियां तुम्हारी, पंछी हमारे अपने से हैं,
मशहूर अल्फाज़ अनेक, गुमनाम हमारें पर शोर बहुत मचातें से हैं।।
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